शुक्रवार शाम को ओडिशा के बालेश्वर जिला अंतर्गत बाहानगा स्टेशन से दो किमी दूर पनपना के पास कोरोमंडल एक्सप्रेस (12841-अप) दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस हादसे में अभी तक 288 लोगों की मौत हो गई। फिलहाल, राहत एवं बचाव कार्य जारी है।
एक आम नागरिक यही चाहता है कि जब देश पर ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटे तो पक्ष -विपक्ष, अमीर -गरीब, हर तबके, हर वर्ग के लोग एकता का परिचय दें। एक ऐसी सहत्व की मिसाल पेश करे की हादसे में मरे शोकाकुल परिजनों के अंदर थोड़ी हिम्मत आए। लेकिन भारत की राजनीति में पत्रकार और राजनेता गिद्ध के भेष धारण करके मृत शरीर को ठंडा होने से पहले ही अपने एजेंडा की रोटी सेकने लगते हैं।
इसी कड़ी में कुछ ट्वीट और बयान साझा करूंगा।
इंडियन यूथ कांग्रेस ने यह ट्वीट किया था।
कांग्रेस नेता श्रीनिवास ने यह ट्वीट किया।
मंजुल ने ये ट्वीट किया।
ओम थानवी ने भी सरकार को कोसते हुए लिखा।
पत्रकार पुण्य प्रसून जोशी ने भी प्रतिक्रिया देते हुए सरकार को घेरा।
राष्ट्रीय जनता दल ने भी इस मामले में ट्वीट कर लिखा।
कथित पत्रकार रोहिणी सिंह ने भी सरकार पर आरोप लगाते हुए ट्वीट किया।
भारत और हिंदू द्वेष से भरे हुए अशोक स्वयं ने ट्वीट कर भारत सरकार के खिलाफ ट्वीट कर लिखा।
मैंने इतने सारे बयान और दावा इसलिए डाला हूं ताकि आप देखें की कैसे सुर में सुर मिलाकर सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। सवाल यह उठता है कि क्या सरकार द्वारा लगाया जा रहा आधुनिक कवच सिस्टम इस हादसे को रोक सकता था?
इस लेख में हम यह देखेंगे कि क्या भारतीय रेलवे द्वारा लाया गया आधुनिक कवच सिस्टम ओडिसा में हुए ट्रेन हादसे को रोक सकता था?
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इस फैक्ट चेक प्रक्रिया में हम सबसे पहले यह समझेंगे कि यह कवच सिस्टम होता क्या है। इसके बाद ओडिसा ट्रेन हादसे को करीब से परीक्षण करेंगे। फिर, इस मामले में विशेषज्ञों के विचार पर प्रकाश डालेंगे। अंत में निष्कर्ष पर पहुंचेंगे।
आजतक की रिपोर्ट के अनुसार, “ये सिस्टम कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस का सेट है। इसमें रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइसेस को ट्रेन, ट्रैक, रेलवे सिग्नल सिस्टम और हर स्टेशन पर एक किलोमीटर की दूरी पर इंस्टॉल किया जाता है। ये सिस्टम दूसरे कंपोनेंट्स से अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिए कम्युनिकेट करता है।
जैसे ही कोई लोको पायलट किसी सिग्नल को जंप करता है, तो कवच एक्टिव हो जाता है। इसके बाद सिस्टम लोको पायलट को अलर्ट करता है और फिर ट्रेन के ब्रेक्स का कंट्रोल हासिल कर लेता है। जैसे ही सिस्टम को पता चलता है कि ट्रैक पर दूसरी ट्रेन आ रही है, तो वो पहली ट्रेन के मूवमेंट को रोक देता है।
सिस्टम लगातार ट्रेन की मूवमेंट को मॉनिटर करता है और इसके सिग्नल भेजता रहता है। अब इस पूरी प्रक्रिया को आसान भाषा में समझते हैं। इस टेक्नोलॉजी की वजह से जैसे ही दो ट्रेन एक ही ट्रैक पर आ जाती हैं, तो एक निश्चित दूरी पर सिस्टम दोनों ही ट्रेनों को रोक देता है।”
एबीपी न्यूज़ के अनुसार, “ साफ शब्दों में इसे ऐसे समझिए कि जब किसी वजह से लोकोपायलट रेलवे सिग्नल को जंप करता है तो यह कवच सिस्टम एक्टिव हो जाता है। एक्टिव होते ही कवच सिस्टम लोकोपायलट को अलर्ट करता है और फिर ट्रेन के ब्रेक्स को कंट्रोल करने लगता है। इसके साथ ही कवच सिस्टम को अगर पता चल जाता है कि एक ही पटरी पर दूसरी ट्रेन भी आ रही है तो वह दूसरी ट्रेन को अलर्ट भेजता है और दूसरी ट्रेन एक निश्चित दूरी पर आकर खुद रुक जाती है।”
दृष्टि आईएएस कोचिंग संस्थान ने अपने वेबसाइट कवच सिस्टम को लेकर एक इन्फोग्रफिक इमेज भी साझा किया है।
भारत के रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जब कवच सिस्टम का परीक्षण किया था, तो एक वीडियो शेयर किया था। वीडियो देखने के बाद इस आधुनिक सिस्टम की तस्वीर और भी ज्यादा साफ हो जाएगी।
इस इमेज और ऊपर दिए गए रिपोर्ट से हमें यह पता चलता है कि जब दो ट्रेनें एक दूसरे के तरफ, अनियंत्रित रफ्तार से बढ़ रहीं हैं तब कवच सिस्टम उनके ऊपर ब्रेक लगाकर, हादसे को रोक सकता है।
एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए एक रेलवे अधिकारी ने बताया कि, “रेलवे बोर्ड के मेंबर ने शनिवार (3 जून) को बताया कि कोरोमंडल एक्सप्रेस (Coromandel Express) में 1257 रिजर्व यात्री बैठे थे जबकि 1039 रिजर्व यात्री बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस में थे।
उन्होंने बताया कि अपलाइन में कोरोमंडल एक्सप्रेस फुल स्पीड से आ रही थी और स्टेशन पर रुकना नहीं था। जबकि डाउनलाइन में बेंगलुरु-हावड़ा यशवंतपुर एक्सप्रेस आ रही थी और हावड़ा की ओर जा रही थी। कॉमन लूप में मालगाड़ी खड़ी थी। ग्रीन सिग्नल कोरोमंडल एक्सप्रेस को मिली थी। कोरोमंडल एक्सप्रेस पटरी से उतर गई। इसके कुछ डिब्बे मालगाड़ी से टकराए और कुछ डिब्बे यशवंतपुर एक्सप्रेस से टकराए जिसके बाद हादसा हुआ।”
एनडीटीवी ने हादसे के घटनाक्रम को समझाते हुए लिखा है कि, “देश की सबसे घातक ट्रेन दुर्घटनाओं में से एक शाम 7 बजे के आसपास हुई, जब कई यात्री सो रहे थे। चेन्नई जा रही कोरोमंडल शालीमार एक्सप्रेस कथित तौर पर पटरी से उतर गई और एक मालगाड़ी से टकरा गई, जिसके बाद कई डिब्बे पलट गए।
इसके बाद यशवंतपुर-हावड़ा सुपरफास्ट पटरी से उतरे डिब्बों से टकरा गई। टक्कर के वक्त दोनों ट्रेनें तेज गति से चल रही थीं। अधिकारियों और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, शाम 6 बजकर 50 मिनट से 7 बजकर 10 मिनट के बीच कुछ ही मिनटों में भीषण त्रासदी हुई। संभावित परिचालन विफलता पर सवालों के बीच रेलवे ने जांच के आदेश दिए हैं।”
एनडीटीवी ने इस हादसे को गंभीरता से लेते हुए, एनिमेशन फिल्म तैयार किया है जिससे हम हादसे के बारे में बारीकी से जान सकते हैं।
आजतक ने भी घटना को एनिमेशन फिल्म की मदद से लोगों को समझाने की कोशिश की।
अगर हम साफ सीधे शब्दों में कहें तो एक पटरी पर माल गाड़ी खड़ी थी। फिर एक एक्सप्रेस ट्रेन अनियंत्रित होकर अपनी पटरी छोड़ माल गाड़ी के पटरी पर जाकर माल गाड़ी से टकरा जाती है। टक्कर इतना तेज गति से होता है कि एक्सप्रेस ट्रेन के कई डिब्बे पटरी से उतर कर एक दूसरे पटरी पर चढ़ जाते हैं और देखते ही देखते एक दूसरी एक्सप्रेस ट्रेन 130 किलोमीटर प्रतिघंटा के तेज रफ्तार से उसी पटरी पर आती और वो भी पहले वाली एक्सप्रेस ट्रेन के डिब्बे से टकरा जाती है।
यानी माल गाड़ी पहले से खड़ी थी, तो कवच सिस्टम के तकनीक को काम करने का कोई तुक नहीं बनता है और दूसरा यह कि पहली वाली एक्सप्रेस ट्रेन भी हादसे के बाद पटरी पर गिरी होती हैं मतलब यहां भी कवच सिस्टम काम नहीं कर सकता। याद रहें की कवच सिस्टम तभी काम करता जब दो ट्रेन आमने सामने से अनियंत्रित होकर एक दूसरे के तरफ आती है। लेकिन यहां माल गाड़ी भी स्थिर खड़ी होती है और हादसे के बाद पहली एक्सप्रेस ट्रेन भी स्थिर खड़ी होती है।
हालांकि कवच सिस्टम काम करता या नहीं, इस बात को सत्यापित करने हेतु हमने विशेषज्ञों के विचार पर प्रकाश डाला।
लल्लनटॉप से बात करते हुए सुधांशु मनी, फादर ऑफ वन्दे भारत ट्रेन ने बताया कि ‘कवच सिस्टम एक बहुत ही बेहतरीन और आधुनिक तकनीक है लेकिन ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना में वो काम नहीं करती क्योंकि यह आमने- सामने दो चलती हुए ट्रेन का या बगल से आ रही ट्रेन के बीच टकराव का मामला नहीं है और न ही यह सिग्नलिंग समस्या का मामला है। आगे उन्होंने यह भी कहा कि पिछले कुछ वर्षों में ट्रेन ऐक्सिडेंट की मात्रा बेशक कम हुई है, लेकिन यह घटना दुर्भाग्य से हुआ है।‘
इंडिया टुडे से भी बात करते हुए सुधांशु मनी ने अपनी बात को दोहराते हुए कहा, “कवच इस हादसे को नहीं रोक सकता था। प्रथम दृष्टया यह सिग्नल फेल होने का मामला नहीं लग रहा है। मूल कारण पहली ट्रेन के पटरी से उतरने जैसा लग रहा है। सरकार जांच करे कि पहली ट्रेन क्यों पटरी से उतरी। कोरोमंडल एक्सप्रेस के चालक ने अवरोध देखा तो वह ब्रेक नहीं लगा सकता था क्योंकि ट्रेन तेज गति से चल रही थी।”
इस लेख में हमने तीन बिंदुओं पर मुख्य रूप से ध्यान केंद्रित किया है। पहला यह कि कवच सिस्टम कैसे काम करता है। दूसरा यह कि ओडिसा में ट्रेन हादसा कैसे हुआ। और तीसरा यह कि, क्या कवच सिस्टम इस ट्रेन हादसे को रोक सकता था।
ऊपर उल्लेख किए गए सारे सबूतों के आधार पर यह कहना उचित होगा कि, कवच सिस्टम की तकनीक ओडिसा हादसे में काम नहीं करती। यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना कई सारे कारकों के कारण हुआ है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घटना को संज्ञान में लेते हुए कहा, “एक हाईलेवल कमेटी भी तय हो गई है, इस एक्सीड़ेंट के तह तक जाएंगे, और पूरी घटना को समझा जाएगा।
दावा | ओडिसा ट्रेन हादसा कवच सिस्टम के बावजूद हो गया। आधुनिक तकनीक कवच हादसे को रोकने में विफल रही। |
दावेदार | विपक्षी राजनीतिक दल, नेता एवं पत्रकार |
फैक्ट चैक | भ्रामक |
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