Home हिंदी क्या लीज पर देकर मोदी सरकार रेलवे की 6.5 लाख करोड़ की संपत्ति बेंच रही है? फैक्ट चेक

क्या लीज पर देकर मोदी सरकार रेलवे की 6.5 लाख करोड़ की संपत्ति बेंच रही है? फैक्ट चेक

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को रेलवे की जमीन को 35 साल के लिए लीज पर देने का फैसला लिया है जिसकी पूर्व में अवधि मात्र 5 साल थी।

वहीं विपक्षी दलों ने फैसले का विरोध करना भी शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने भी फैसले के विरोध में मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला। अपने एक ट्वीट में आप सांसद ने कहा, “जो बाप दादा की सम्पत्ति बढ़ाते हैं वो “सपूत”कहलाते हैं। जो बेचते हैं वो “कपूत” कहलाते हैं।
मोदी सरकार देश की 6.5 लाख करोड़ की सम्पत्ति बेंच रही है।
क्या देश बेंचने वालों को “भारत माता की जय”लगाने का हक़ है।”

आर्काइव लिंक

ट्वीट से साफ ज्ञात होता है कि संजय सिंह ने रेलवे सम्पत्ति को लीज पर देने के फैसले को सम्पत्ति को बेचना बताया है।

Fact Check

हमनें संजय सिंह के दावे की गहन पड़ताल की तो हमारी पड़ताल में सच्चाई कुछ और ही निकली।

पड़ताल में सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि लीज संपत्ति क्या है और इसके स्वामित्व की शर्तें क्या होती हैं।

लीज क्या होता है ?

लीज एक क़ानूनी क़रारनामा होता है जिसके अनुसार किसी भवन या भूखंड को निर्धारित अवधि के लिए किराए पर लिया जाता है।
इसका सीधा मतलब है कि जो भी कोई रिहायशी या व्यापारिक सम्पत्ति खरीदता है, उसका उतने ही वर्षों के लिए उस पर अधिकार रहेगा जितने वर्ष के लिए यह करारनामा हुआ है। इसके बाद जमीन के मालिक के पास अधिकार आ जाएगा।

गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पीएम गति शक्ति ढांचे को लागू करने के लिए (कार्गो संबंधी गतिविधियों, जन उपयोगिताओं और रेलवे के विशेष इस्तेमाल हेतु) रेलवे की भूमि नीति को संशोधित करने के रेल मंत्रालय के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

निर्णय की पृष्ठभूमि

सरकार का कहना है कि रेलवे का संगठन और नेटवर्क पूरे देश में फैला हुआ है। हालांकि, रेलवे अपनी मौजूदा भूमि नीतियों के साथ बुनियादी ढांचे के अन्य माध्यमों के साथ अच्छी तरह से एकीकृत नहीं हो सका है। इसलिए पीएम गति शक्ति ढांचे के तहत देश भर में तेज एकीकृत प्लानिंग और बुनियादी ढांचे के विकास को मुमकिन करने के लिए रेलवे की भूमि पट्टा नीति को सुव्यवस्थित और सरल बनाने की आवश्यकता महसूस की गई।

मौजूदा नीति रेलवे से संबंधित किसी भी गतिविधि के लिए पांच साल तक की छोटी अवधि के लिए रेलवे भूमि के लाइसेंस की अनुमति देती है। इस तरह की अल्पकालिक लाइसेंस अवधि मल्टी-मोडल कार्गो हब बनाने के लिए किसी भी प्रतिबद्ध निवेशक को आकर्षित नहीं करती है। मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) को ही सरकारी भूमि पट्टे पर देने के लिए 35 साल तक की लंबी अवधि तक रेलवे भूमि के पट्टे देने की अनुमति है। इससे कार्गो टर्मिनलों में निवेश का दायरा सीमित हो जाता है। चूंकि रेल परिवहन का एक कुशल साधन है, इसलिए रेल द्वारा ज्यादा माल ढुलाई करना आवश्यक है ताकि उद्योग की लॉजिस्टिक्स लागत को कम किया जा सके। माल ढुलाई में रेल के सामान्य हिस्से को बढ़ाने के लिए और ज्यादा कार्गो टर्मिनलों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए भूमि पट्टे की नीति को संशोधित करने की आवश्यकता महसूस की गई है।

निर्णय का विवरण :

रेलवे की ये संशोधित भूमि नीति बुनियादी ढांचे और ज्यादा कार्गो टर्मिनलों के एकीकृत विकास को सक्षम करेगी।

ये नीति भूमि के प्रति वर्ष बाजार मूल्य के 1.5% की दर से 35 वर्ष तक की अवधि के लिए, कार्गो से संबंधित गतिविधियों के लिए रेलवे की भूमि को लंबी अवधि के पट्टे पर प्रदान करती है।

कार्गो टर्मिनलों के लिए रेलवे भूमि का उपयोग कर रही मौजूदा संस्थाओं के पास, पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के बाद नई नीति व्यवस्था अपनाने का विकल्प होगा।

अगले पांच वर्षों में 300 पीएम गति शक्ति कार्गो टर्मिनल विकसित किए जाएंगे और लगभग 1.2 लाख रोजगार सृजित होंगे।

इससे माल ढुलाई में रेल की हिस्सेदारी बढ़ेगी और देश में कुल लॉजिस्टिक्स लागत में कमी आएगी।

ये नीति भूमि के प्रति वर्ष बाजार मूल्य के 1.5% की दर से रेलवे भूमि प्रदान करके बिजली, गैस, पानी की आपूर्ति, सीवेज निपटान, शहरी परिवहन जैसी जन सुविधाओं के एकीकृत विकास के जरिए रेलवे की भूमि उपयोग को और रास्ते के अधिकार (आरओडब्ल्यू) को सरलीकृत करती है।

ऑप्टिकल फाइबर केबल्स (ओएफसी) और अन्य छोटे व्यास वाली भूमिगत उपयोगिताओं के लिए, रेलवे ट्रैक पार करने के लिए 1000 रुपये का एकमुश्त शुल्क लिया जाएगा।

इस नीति में रेलवे की जमीन पर सोलर प्लांट लगाने के लिए नाममात्र की लागत पर रेलवे की जमीन के इस्तेमाल का प्रावधान है।

ये नीति प्रति वर्ष 1 रुपया प्रति वर्गमीटर के मामूली वार्षिक शुल्क पर रेलवे भूमि पर सामाजिक बुनियादी ढांचे (जैसे पीपीपी के जरिए अस्पताल और केंद्रीय विद्यालय संगठन के जरिए स्कूल) के विकास को भी प्रोत्साहित करती है।

इसका प्रभाव :

इससे रेलवे को और ज्यादा कार्गो आकर्षित करने में मदद मिलेगी, माल ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी बढ़ेगी और इससे इस उद्योग की लॉजिस्टिक्स लागत कम होगी।

इससे रेलवे को अधिक राजस्व मिलेगा।

ये पीएम गति शक्ति कार्यक्रम में सोची गई जन उपयोगिताओं के लिए मंजूरियों को सरलीकृत करेगा। इससे बिजली, गैस, पानी की आपूर्ति, दूरसंचार केबल, सीवेज निपटान, नालियां, ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी), पाइपलाइन, सड़क, फ्लाईओवर, बस टर्मिनल, क्षेत्रीय रेल परिवहन, शहरी परिवहन जैसी जन उपयोगिताओं के एकीकृत तरीके से विकास में मदद मिलेगी।

इस नीतिगत संशोधन से लगभग 1.2 लाख रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

पूर्व के निर्णय

हालांकि ये मोदी सरकार कोई पहली सरकार नहीं है जो सरकारी भूमि को लीज पर देने का निर्णय कर रही है बल्कि कई पूर्ववर्ती सरकारें ऐसा निर्णय कर चुकी हैं। इसके अलावा कई वर्तमान सरकारें भी ऐसे कदम उठा रही हैं।

उदाहरण के तौर पर छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने अगस्त 2022 को राज्य के स्वामित्व वाले 24 होटल और रिसॉर्ट के लिए बोलियां आमंत्रित की थीं, जिन्हें निजी निवेशकों को 30 साल के लिए पट्टे पर देने का प्रावधान है।

राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने अगस्त 2022 में ही प्रदेश में वैध खनन को बढ़ावा देने के लिये खनन नियमों को और आसान करने का निर्णय लिया था। इसके तहत खनन पट्टों और क्वारीलाइसेंस की अवधि 31 मार्च 2025 से बढ़ाकर 2040 तक कर दी गई थी।

अक्टूबर 2008 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने भारत की तीसरी रेल कोच फैक्ट्री के निर्माण के लिए कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली में 189 हेक्टेयर राज्य के स्वामित्व वाली भूमि को 90 साल की लीज पर देने का फैसला किया था।

अगस्त 2012 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में विकसित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए सरकारी भूमि के हस्तांतरण पर प्रतिबंध हटाने के लिए हस्तक्षेप किया था। सरकार के कदम ने पहले की नीति को उलट दिया था जिसमें बंदरगाहों, सड़कों, रेलवे स्टेशनों या हवाई अड्डों जैसे बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सरकार द्वारा भूमि हस्तांतरण के हर प्रस्ताव के लिए कैबिनेट की मंजूरी की आवश्यकता होती थी जिसमें अनिवार्य रूप से लगभग 6 महीने का समय लगता था।

इन तमाम बिंदुओं से साफ है कि आप सांसद द्वारा किया दावा कि मोदी सरकार देश की 6.5 लाख करोड़ की सम्पत्ति बेंच रही है, भ्रामक है और तथ्यों से परे है।

Claim मोदी सरकार देश की 6.5 लाख करोड़ की सम्पत्ति बेंच रही है।
Claimed byआप सांसद संजय सिंह
Fact Checkभ्रामक एवं तथ्यहीन है।

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जय हिन्द।

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